गाता जाये बंजारा
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झरोखा इस पुस्तक का जीवन यात्रा के हर पायदान का अपना ही एक अलग रंग, अंदाज़ और आनंद होता है। बचपन, जो मासूम है, कोरा काग़ज़ है, सरल है, चंचल है, रोमांचक है, निडर है, स्वभाविक है और उन्मुक्तता का बोध है। लड़कपन, एक सपना है, उड़ान है, रस है, जोश है, कर गुज़रने का उन्माद है और नए नए अनुभवों का आभास है। प्रौढ़ावस्था लाती है ज़िम्मेदारी, सामाजिक बंधन, और जीवन की वास्तविकता का बोध। सेवानिवृत्ति जीवन में ठहराव लाती है और एक सकारात्मक इंसान इस समय का उपयोग अपने सपनों और शौक़ को पूरा कर अपार प्रसन्नता और तृप्ति का अनुभव कर सकते हैं । जीवन के यह सभी रंग आपको इस पुस्तक “गाता जाए बंजारा” में मिलेंगे, जो कि आदरणीय प्रोफ़ैसर रमेश दत्त जी की आत्मकथा है। यह पुस्तक उनके जीवन के बहुत से रोचक प्रसंगों से सुसज्जित है, जिन्हें पढ़कर आपको केवल प्रसन्नता ही नहीं अपितु प्रेरणा भी हासिल होगी! NB: इस पुस्तक से होने वाली तमाम आमदनी को ज़रूरतमंद बच्चों की शिक्षा के लिए उपयोग में लाया जाएगा।
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